अगर जिंदगी गुलज़ार नहीं है, तो इस महफिल में आइए…

उन्हें जानने और पसंद करने वालों में भी बहुत ही कम ऐसे लोग होंगे, जो उनका असली नाम जानते हों। उन्हें चाहने वालों के लिए उनका गुलजार होना ही काफी है। उनके होने से शब्दों की हर महफिल गुलजार हो उठती है और इस तरह हर बार वो अपने नाम को सच में जीते नजर आते हैं। बेशक बचपन में संपूर्ण सिंह कालरा हैं, लेकिन उनका होना, उनको पढ़ना, उनको समझना, उनको गुनगुनाना जैसे खुद को भी थोड़ा-थोड़ा गुलजार कर लेना है। जिंदगी की माला में उन्होंने जो उम्मीद और हौंसलों के मोती पिरोए हैं…उन्हें एक-एक मनके में पढ़ें…तो कई दीवारों की खिड़की खुलती है-
कहते हैं-
‘सांस लेना भी कैसी आदत है
जीये जाना भी क्या रवायत है
कोई आहट नहीं बदन में कहीं
कोई साया नहीं है आंखों में
पांव बेहिस हैं, चलते जाते हैं
इक सफ़र है जो बहता रहता है
कितने बरसों से, कितनी सदियों से
जिये जाते हैं, जिये जाते हैं
आदतें भी अजीब होती हैं’
फिर जिंदगी के नाम पर दिल को यूं बहलाते हैं-
‘हजारों
उलझनें राहों में और
कोशिशें बेहिसाब
इसी का नाम है
जिंदगी
चलते रहिए जनाब’
क्योंकि रुक जाना बहुत खराब होता है, इसलिए वो चलते जाने की अहमियत समझाते हैं-
‘जीवन से लंबे हैं बंधु, ये जीवन के रास्ते
इक पल थम के रोना होगा, इक पल चलना हंस के
राहों से हारी का रिश्ता कितने जनम पुराना
एक को चलते जाना, आगे एक को पीछे आना
मोड़ पे मत रूक जाना बंधु, दोराहे में फंस के’
जिंदगी की एक परिभाषा उनके लफ्जों में ये भी है-
‘कहने वालों का कुछ नहीं जाता
सहने वाले कमाल करते हैं
कौन ढूंढे जवाब दर्दों के
लोग तो बस सवाल करते हैं
आज बिछड़े हैं
कल का डर भी नहीं
जिंदगी इतनी मुख्तसर भी नहीं’
फिर वो प्यार, जिस पर कितनी ही कविताएं, कितनी ही बातें बेमानी हो जाती हैं…उस प्यार की गुत्थी को गुलजार यूं सुलझाते हैं-
‘प्यार कोई बोल नहीं
प्यार आवाज नहीं
एक खामोशी है सुनती है
कहा करती है
ना ये बुझती है, न रुकती है
न ठहरी है कहीं
नूर की बूंद है
सदियों से बहा करती है’
जिंदगी में रिश्तों की डोर को बांधना आसान नहीं रहा अब, फिर भी चुनौतियों से हार जाना भी तो गुलजार होने के खिलाफ है-
‘हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते
जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा-थोड़ा
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसे दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते’
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