दुख कैसा? आज अपना हो ना हो, कल हमारा है

कभी-कभी वक्त और हालात दिलो-दिमाग में एक अजीब सी थकान पैदा कर देते हैं। एक ऐसी थकान जो बिना कुछ किए भी हर वक्त हावी रहती है। उस थकान से पीछा कैसे छुड़ाएं? कैसे फिर से वही ऊर्जा पाएं, जो सपनों को पूरा करने की ओर ले चले? कैसे जिंदगी को आसान बनाएं? इन सब सवालों के जवाब देती हैं कवि और गीतकार शैलेंद्र की कविताएं। यूं तो उनके गीत है जिंदगी का जज्बा जगाने के लिए काफी हैं, मगर उनकी कुछेक कविताएं भी हैं, जो मोहब्बत और इंसानियत का रास्ता दिखाती हैं। आज Tire tuesday में पढ़िए शैलेंद्र की ऐसी ही एक कविता-
ग़म की बदली में चमकता एक सितारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
धमकी गै़रों की नहीं अपना सहारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
गर्दिशों से हारकर ओ बैठने वाले
तुझको खबर क्या अपने पैरों में भी छाले हैं
पर नहीं रुकते कि मंज़िल ने पुकारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
ये कदम ऐसे जो सागर पाट देते हैं
ये वो धाराएं हैं जो पर्वत काट देते हैं
स्वर्ग उन हाथों ने धरती पर उतारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
सच है डूबा-सा है दिल जब तक अंधेरा है
इस रात के उस पार लेकिन फिर सवेरा है
हर समंदर का कहीं पर तो किनारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
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