
Starry Saturday में इस बार पेश है अशोक वाजपेयी के खजाने से एक कविता। आधुनिक साहित्य की दुनिया में इनके नाम को किसी परिचय की जरूरत नहीं है। इनका सक्रिया लेखन स्वयं इनकी पहचान है। उनकी सीधी सरल कविताएं सीधे दिल तक पहुंचती हैं और हमें आगे का रास्ता दिखाती हैं। जब हम आगे बढ़ने से बचने लगते हैं, तब इस तरह कविता का हमें रास्ता दिखाना, किसी दर्द निवारक औषधि से कम नहीं है।
अशोक वाजपेयी मूल रूप से मध्य प्रदेश के दुर्ग से संबंध रखते हैं। 16 जनवरी 1941 को यहीं इनका जन्म हुआ। फिलहाल यह दिल्ली में रहते हैं। कुछ ही लोग जानते हैं कि अशोक वाजपेयी भारतीय प्रशासनिक सेवा में पूर्व अधिकारी भी रह चुके हैं।
इस समय जरूरी है उनकी इस कविता को पढ़ना-
एक खिड़की
मौसम बदले, न बदले
हमें उम्मीद की
कम से कम
एक खिड़की तो खुली रखनी चाहिए।
शायद कोई गृहिणी
वसंती रेशम में लिपटी
उस वृक्ष के नीचे
किसी अज्ञात देवता के लिए
छोड़ गई हो
फूल-अक्षत और मधुरिमा।
हो सकता है
किसी बच्चे की गेंद
बजाय अनंत में खोने के
हमारे कमरे में अंदर आ गिरे और
उसे लौटाई जा सके
देवासुर-संग्राम से लहूलुहान
कोई बूढ़ा शब्द शायद
बाहर की ठंड से ठिठुरता
किसी कविता की हल्की आंच में
कुछ देर आराम करके रुकना चाहे।
हम अपने समय की हारी होड़ लगाएँ
और दाँव पर लगा दें
अपनी हिम्मत, चाहत, सब-कुछ –
पर एक खिड़की तो खुली रखनी चाहिए
ताकि हारने और गिरने के पहले
हम अंधेरे में
अपने अंतिम अस्त्र की तरह
फेंक सकें चमकती हुई
अपनी फिर भी
बची रह गई प्रार्थना।
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