मिर्जा ग़ालिब और गुलज़ार के नाम पर इन दिनों बहुत कुछ फेक लिखकर वायरल किया जा रहा है, जिसे फिल्टर किया जाना जरूरी है, ताकि सही कविता लोगों तक पहुंचे
ग़ालिब और गुलज़ार के नाम पर कहीं आप भी तो नहीं खा रहे धोखा!

-अभिषेक कुमार अम्बर
कभी-कभी इस दुनिया में कुछ ऐसे शायर जन्म लेते हैं जिनकी शायरी, जिनकी कविताएं आम लोगों तक अपनी ऐसी पहुंच बनाती हैं कि लोगों की ज़बान पर चढ़ कर बोलती हैं। लोग मुहावरों के रूप में उसका इस्तेमाल करने लगते हैं। ऐसे शायरों में जहां गुज़श्ता सदियों में कबीर, मिर्ज़ा ग़ालिब, स्वामी विवेकानंद, हरिवंशराय बच्चन आदि मशहूर गुज़रे हैं, वहीं वर्तमान समय में बॉलीवुड के मशहूर गीतकार और शायर गुलज़ार साहब का नाम आता है।
पिछले कुछ सालों में जब से इंटरनेट सभी लोगों के लिए सुलभ हुआ है और एडिटिंग वगैरह के एप मुफ़्त में उपलब्ध हैं तो हर नौसिखिया अपने दिमाग़ की उपज को मिर्ज़ा ग़ालिब, हरिवंशराय बच्चन, स्वामी विवेकानंद या गुलज़ार आदि की फोटो के साथ एडिट करके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट कर वायरल कर देता है।
हैरत की बात तो ये है कि यह सब इतनी क़ामयाबी से किया जाता है कि बड़े-बड़े लोग धोखा खा जाते हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है पिछले साल ग्रीष्मकालीन सत्र में राज्यसभा में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने ऐसी ही कुछ वायरल पंक्तियों को ग़ालिब का नाम लेकर पढ़ दिया। यह पंक्तियाँ निम्न हैं –
ताउम्र ग़ालिब ये भूल करता रहा,
धूल चेहरे पे थी, आईना साफ करता रहा
अब आप इन पंक्तियों को पढ़कर ख़ुद ही सोचिये, क्या ग़ालिब के शेर ऐसे होते हैं? ग़ालिब का अपना एक अलग ही ‘अंदाज़े-बयां’ या ख़ास कहन है और वह उसी की वजह से बेहद मक़बूल हुए। इसकी तस्दीक़ उनके इस शेर से ख़ुद होती है-
हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़े-बयां और
कुछ ऐसा ही गुलजार साहब के साथ भी होता आ रहा है। उनके भी नाम का लोगों ने फालतू शायरी में ऐसा इस्तेमाल किया है कि आप लोग यह समझ नहीं पाते कि क्या गुलज़ार साहब का लिखा है और क्या नहीं। उदाहरण के लिए देखिए-
थोड़ा सुकून भी ढूंढिये जनाब
ये ज़रूरत तो कभी ख़त्म नहीं होती
पीतल की बालियों में बेटी ब्याह दी
बाप मज़दूर था सोने की खान में
कहां गुलज़ार साहब की शब्दों की जादूगरी और कहां यह पंक्तियां …
एक कार्यक्रम में गुलज़ार साहब ने ख़ुद इस बात कि पुष्टि की है कि सोशल मीडिया पर उनके नाम से जो कविताएं शेयर की जाती हैं उनमें से 99 प्रतिशत उनकी लिखी नहीं है।
साहित्यकार या साहित्य की समझ रखने वाले लोग तो असली नकली शायरी में अंतर कर लेते हैं। लेकिन आम लोग इसमें फेल हो जाते हैं।
तो चलिये आज मैं आपको कुछ ऐसी बातें बताने की कोशिश करूँगा जिससे आप लोग असली-नकली शायरी का अंदाज़ा लगा पाएंगे।
- अंदाज़े-बयां = जैसा कि मैंने ऊपर ग़ालिब का एक शेर भी दिया है कि “कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़े-बयां और”। उसी तरह हर शायर का शेर कहने का तरीक़ा अलग होता है। आप कोई भी दो तीन शायरों के शेर उठा कर देख लीजिये। आपको हर शायर का अलग लहजा देखने को मिलेगा। मिसाल के तौर पर-
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
-मीर तक़ी मीर
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
-मिर्ज़ा ग़ालिब
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता
-दाग़ देहलवी
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
-अहमद फ़राज़
बहर या मीटर= शायरी ख़ासकर ग़ज़ल, बहर या मीटर में कही जाती है। बहर एक पैमाना होता है जिसपर किसी भी शेर या ग़ज़ल को ख़रा उतरना होता है तभी वह मुकम्मल होता है। यह एक प्रकार से विभिन्न प्रकार की ली होती हैं। पाठकों की इसमें ज़्यादा अंदर न जाते हुए सिर्फ इतना ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी शेर या ग़ज़ल में एक लय होती है जो उसकी प्रत्येक पंक्ति में बराबर होती है। इसी वजह से उसको गाया जा सकता है लेकिन सोशल मीडिया वाली शायरी को गाकर नहीं पढ़ा जा सकता। यहाँ आपको एक चीज़ और बताता चलूं कि नज़्म की प्रत्येक पंक्ति बराबर हो ऐसा कोई नियम नहीं होता तो इसलिए वहां यह लय प्रत्येक पंक्ति में कम ज़्यादा हो सकती है पर होगी ज़रूर। उदाहरण के लिए गुलज़ार साहब की एक नज़्म पेश है!
साँस लेना भी कैसी आदत है
जिए जाना भी क्या रिवायत है
कोई आहट नहीं बदन में कहीं
कोई साया नहीं है आँखों में
पाँव बेहिस हैं चलते जाते हैं
इक सफ़र है जो बहता रहता है
कितने बरसों से कितनी सदियों से
जिए जाते हैं जिए जाते हैं
आदतें भी अजीब होती हैं।
शब्द चुनाव तथा संयोजन = प्रत्येक शायर की शायरी में शब्दों का चुनाव एवं संयोजन अलग होता है। आप उदाहरण के लिए ऊपर दी गुलज़ार साहब की नज़्म को लीजिए। गुलज़ार साहब की नज़्म में एक भी शब्द ऐसा नहीं है जो फालतू आ गया हो अर्थात जिसकी ज़रूरत न हो। अगर गुलज़ार साहब की नज़्म की किसी भी पंक्ति से कोई शब्द निकाल दें तो उसका अर्थ बदल जायेगा और वह पंक्ति उतनी प्रभावी नहीं रहेगी जितनी अभी है। यह शब्द चुनाव और संयोजन है।
साहित्यिक वेबसाइट – असली शायरी पढ़ने के लिए सबसे बढ़िया उपाय यही है कि आप ऐसी साहित्यिक वेबसाइट पर ही शायरी पढ़ें जिनकी साहित्यिक क्षेत्र में प्रतिष्ठा हो। उदाहरण के लिए कविता कोश, रेख़्ता, अमर उजाला काव्य, उर्दू पॉइंट और पोएट्री क्लीनिक आदि।
अब अंत में आपको बताता चलूं कि गुलज़ार साहब की शायरी की तस्दीक़ के लिए फेसबुक पर #NotByGulzar नाम से एक पेज है जो यह पुष्टि करता है कि कौन सी रचना गुलज़ार साहब की है और कौन सी नहीं। और भी शायरों ख़ासकर मिर्ज़ा ग़ालिब के लिए भी ऐसी पहल करने की ज़रूरत है। बाक़ी असली नक़ली शायरी में फ़र्क़ करना आपके पढ़ने पर निर्भर करता है कि आपने किस शायर की कितनी दिल और गहराई से पढ़ा है।
(लेखक युवा शायर हैं और कविताकोश पर सहायक संपादक हैं)
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